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भारत के इतिहास में जैन तीर्थों मं उज्जयिनी अवंतिका नगरी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। श्री ऋषभदेवजी छगनीरामजी पेढ़ी, श्रीपाल मार्ग खाराकुंआ स्थित सिद्धचक्राराधन केसरियानाथ तीर्थ की महिमा 20 वें तिर्थंकर मुनिसुव्रतस्वामी व भगवान राम, सीता एवं श्रीपाल मयणा सुन्दरी के समकालीन ऐतिहासिक एवं पौराणिक ग्रंथों में इस तीर्थ की महिमा मंडित है।
श्रीलंका में सीताजी द्वारा अशोक वाटिका में मिट्टी और बालू से भगवान ऋषभदेवजी की जो प्रतिमा बनाई थी, रावण को युद्ध में पराजित कर अयोध्या के लिये जाते समय रास्ते में क्षिप्रा नदी के तट पर वैभवशाली नठारी को देखकर रूके तथा भगवान ऋषभदेवजी की मूर्ति को स्थापित कर पूजा की तथा जाते समय मुर्ति को ले जाने के लिये उठाने लगे तो मूर्ति हिली भी नहीं तब अधिष्ठायक देव ने ही कहा कि अब मूर्ति को यहीं प्रतिष्ठित करना होगी तब भगवान राम ने तत्कालीन राजा को बुलाकर मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठित करने को कहा तथा कालान्तर में श्रीपाल मयणासुन्दरी ने इसी मूर्ति के समक्ष सिद्धचक्र आराधना कर कुष्ठ रोग निवारण किया था। यहीं प्रतिमाजी आज उदयपुर के समीप घुलेवा नगर में केसरियानाथजी के नाम से पूजा रही है। श्रीपाल मयणासुन्दरी द्वारा सिद्धचक्रजी की आराधना वाली बात की सत्यता उजागर करने वाला एक ऐतिहासिक शिलालेख आज भी विद्यमान है।